समय के तेज रफ्तार में, जीवन का गुजरा हुआ कल, कभी कभी टीस देता है, दिल के कब्रिस्तान में, दफनाए हुए मधुर यादों को, फिर से कुरेदने के लिए, जिसकी खूशबू लिए चलता रहा, सफर के डगर पर अब तलक, जब भी दुनियाँ की बेरुखी ने, खडा किया है मुझे दोराहे पे, तब उनकी अदृश्य तस्वीर ही तो, आकर सामने संम्भाल लिया, अपने यादों के आँचल में समेटकर, यह जरुरी तो नहीं कि, साथ देने वाला ही साथ हो, उनकी याद ही तो काफी है, संम्बल देने के लिए, जीवन सफर के डगर पर - प्रकाश यादव "निर्भीक" |
Wednesday, November 10, 2010
Sunday, July 18, 2010
असभ्य सभ्य पर हँसता है!!!
आज एक अर्ध्दनग्न लड़की को,
एक सभ्य औरत पर हँसते देखा,
वजह बस इतनी थी कि,
औरत घुंघट ले गाड़ी मेँ,
अपनी इज्जत को खुद मेँ,
समेटे चुपचाप बैठी थी,
और वह आधुनिक लड़की,
कामुक वेश मेँ चौराहे पर खडी,
परोस रही थी अपनी जिस्म,
दुनियां को सरेआम,
और हँस रही थी उस औरत पर,
कैसा बदल गया जमाना अब,
असभ्य सभ्य पर हँसता है,
वाह वाही का हक पाता है,
और वह नारी,
जो भारतीयता की पहचान है,
जिसकी महिमा का गुनगान,
गुँजता है आदिग्रन्थोँ मेँ,
विषय बन जाती है हँसी की,
इन लडकियोँ के बीच,
कहाँ गई भारत की वह गरिमा,
जहाँ नारी देवी मानी जाती थी,
क्या यही है उसका प्रतिबिम्ब,
शायद सब कुछ बदल गया अब,
चोर उचक्के बन गये साधु,
लुटेरे बन गये देश के कर्णधार,
तो क्योँ न यह लडकी,
हँसे उस शालीन औरत पर--
प्रकाश यादव "निर्भीक"
आज एक अर्ध्दनग्न लड़की को,
एक सभ्य औरत पर हँसते देखा,
वजह बस इतनी थी कि,
औरत घुंघट ले गाड़ी मेँ,
अपनी इज्जत को खुद मेँ,
समेटे चुपचाप बैठी थी,
और वह आधुनिक लड़की,
कामुक वेश मेँ चौराहे पर खडी,
परोस रही थी अपनी जिस्म,
दुनियां को सरेआम,
और हँस रही थी उस औरत पर,
कैसा बदल गया जमाना अब,
असभ्य सभ्य पर हँसता है,
वाह वाही का हक पाता है,
और वह नारी,
जो भारतीयता की पहचान है,
जिसकी महिमा का गुनगान,
गुँजता है आदिग्रन्थोँ मेँ,
विषय बन जाती है हँसी की,
इन लडकियोँ के बीच,
कहाँ गई भारत की वह गरिमा,
जहाँ नारी देवी मानी जाती थी,
क्या यही है उसका प्रतिबिम्ब,
शायद सब कुछ बदल गया अब,
चोर उचक्के बन गये साधु,
लुटेरे बन गये देश के कर्णधार,
तो क्योँ न यह लडकी,
हँसे उस शालीन औरत पर--
प्रकाश यादव "निर्भीक"
-: बातें अनकही हुई:-
फाइल के पन्ना दर पन्ना,
पलटते समय रोक लेती है,
तुम और तुम्हारी झील सी आँखें,
रुक जाता हूँ मैँ क्षणभर,
तुम्हारी नजरों से
अपनी नजरें मिलाते हुए,
कोशिश करता हूँ पढने की,
तुम्हारी नयनों की भाषा,
फिर पलटता हूँ पन्ना आगे का,
काम करते हुए और -
एक बार फिर रोक लेती है,
तुम्हारी लम्बी काली रेशमी जुल्फें,
जो शायद छुपा लेना चाहती है मुझे,
अपने गेसूओं में,
कैद होने के डर से,
आगे बढ जाता हूँ मैं,
बढते समय आगे अचानक,
मिल जाती हो तुम फिर,
अपनी मधुर मुस्कान के साथ,
कुछ कहना चाहती हो शायद तुम,
मगर कहकर भी कुछ कह नहीं पाती,
और रह जाती है बातें सारी,
एक बार फिर अनकही हुई...
-: प्रकाश यादव 'निर्भीक'
फाइल के पन्ना दर पन्ना,
पलटते समय रोक लेती है,
तुम और तुम्हारी झील सी आँखें,
रुक जाता हूँ मैँ क्षणभर,
तुम्हारी नजरों से
अपनी नजरें मिलाते हुए,
कोशिश करता हूँ पढने की,
तुम्हारी नयनों की भाषा,
फिर पलटता हूँ पन्ना आगे का,
काम करते हुए और -
एक बार फिर रोक लेती है,
तुम्हारी लम्बी काली रेशमी जुल्फें,
जो शायद छुपा लेना चाहती है मुझे,
अपने गेसूओं में,
कैद होने के डर से,
आगे बढ जाता हूँ मैं,
बढते समय आगे अचानक,
मिल जाती हो तुम फिर,
अपनी मधुर मुस्कान के साथ,
कुछ कहना चाहती हो शायद तुम,
मगर कहकर भी कुछ कह नहीं पाती,
और रह जाती है बातें सारी,
एक बार फिर अनकही हुई...
-: प्रकाश यादव 'निर्भीक'
-: एक ख्वाब टुटा हुआ :-
जख्म को मत इतना कुरेदो कोई
कि फिर से यह हरा न हो जाए
वरना कांटो भरी राहों में चलना
फिर से हमारा मुश्किल हो जायेगा
एक ही तो गुलाब था जिन्दगी में
जिसे देख मुस्कुराते थे कभी हम
उसका न होने का अहसास न कराओ
वरना फिर संभलना मुश्किल हो जायेगा
अधुरी ख्वाहिश रह गई तो क्या हुआ
पूरी होती ख्वाहिश कहां किसी की यहां
अधुरेपन में ही यहां जीने का मजा है
वरना सफर में हमसफर याद आती कहां
दूर होकर भी हरवक्त आसपास है वो
जीवन के हरपल में एक श्वांस है वो
तमन्ना पूरी हुई नहीं हमारी तो क्या हुआ
जिन्दगी का टुटा हुआ एक ख्वाब है वो
मजबुर थे हालात से हम दोनों इस कदर
चाहकर भी न बन सके हम हमसफर
दूर रहकर ही बांट लेगें सारे गम अपने
"निर्भीक" की तरह कट जायेगा जीवन सफर
प्रकाश यादव "निर्भीक"
जख्म को मत इतना कुरेदो कोई
कि फिर से यह हरा न हो जाए
वरना कांटो भरी राहों में चलना
फिर से हमारा मुश्किल हो जायेगा
एक ही तो गुलाब था जिन्दगी में
जिसे देख मुस्कुराते थे कभी हम
उसका न होने का अहसास न कराओ
वरना फिर संभलना मुश्किल हो जायेगा
अधुरी ख्वाहिश रह गई तो क्या हुआ
पूरी होती ख्वाहिश कहां किसी की यहां
अधुरेपन में ही यहां जीने का मजा है
वरना सफर में हमसफर याद आती कहां
दूर होकर भी हरवक्त आसपास है वो
जीवन के हरपल में एक श्वांस है वो
तमन्ना पूरी हुई नहीं हमारी तो क्या हुआ
जिन्दगी का टुटा हुआ एक ख्वाब है वो
मजबुर थे हालात से हम दोनों इस कदर
चाहकर भी न बन सके हम हमसफर
दूर रहकर ही बांट लेगें सारे गम अपने
"निर्भीक" की तरह कट जायेगा जीवन सफर
प्रकाश यादव "निर्भीक"
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