समय के तेज रफ्तार में,
जीवन का गुजरा हुआ कल,
कभी कभी टीस देता है,
दिल के कब्रिस्तान में,
दफनाए हुए मधुर यादों को,
फिर से कुरेदने के लिए,
जिसकी खूशबू लिए चलता रहा,
सफर के डगर पर अब तलक,
जब भी दुनियाँ की बेरुखी ने,
खडा किया है मुझे दोराहे पे,
तब उनकी अदृश्य तस्वीर ही तो,
आकर सामने संम्भाल लिया,
अपने यादों के आँचल में समेटकर,
यह जरुरी तो नहीं कि,
साथ देने वाला ही साथ हो,
उनकी याद ही तो काफी है,
संम्बल देने के लिए,
जीवन सफर के डगर पर
- प्रकाश यादव "निर्भीक"