कुरेदकर अब उसे क्या करूँ
फोफले जो ये गम के उगे हैं
मरहम लगाकर उसमें क्या करूँ
खुद का सिक्का ही खोटा निकला
किसी पे इल्जाम लगाकर क्या करूँ
डूब ही गई जब मंजिल का नैया
दरिया में गोता लगाकर क्या करूँ
शक है जब मेरी काबिलियत पर
तो उसे आइना दिखाकर क्या करूँ
था जब तक़दीर में काटों पे चलना
तो गुलशन लगाकर ही क्या करूँ
सफ़र में है जब तनहा ही रहना
तो किसी महफ़िल में ही क्या करूँ
जुगनुओं को ताकते ही रात काटना
तो तमन्ना ए चिराग का क्या करूँ
राह जब कभी रूकती ही नहीं
थका राही ही बनकर क्या करूँ
दोस्तों की दुआ है जब साथ अपना
तो किसी की तोहमत का क्या करूँ
प्रकाश यादव "निर्भीक"