Wednesday, May 25, 2011

जख्म जो ये दिल पे लगे हैं
कुरेदकर अब उसे क्या करूँ
फोफले जो ये गम के उगे हैं
मरहम लगाकर उसमें क्या करूँ

खुद का सिक्का ही खोटा निकला
किसी पे इल्जाम लगाकर क्या करूँ
डूब ही गई जब मंजिल का नैया
दरिया में गोता लगाकर क्या करूँ

शक है जब मेरी काबिलियत पर
तो उसे आइना दिखाकर क्या करूँ
था जब तक़दीर में काटों पे चलना
तो गुलशन लगाकर ही क्या करूँ

सफ़र में है जब तनहा ही रहना
तो किसी महफ़िल में ही क्या करूँ
जुगनुओं को ताकते ही रात काटना
तो तमन्ना ए चिराग का क्या करूँ

राह जब कभी रूकती ही नहीं
थका राही ही बनकर क्या करूँ
दोस्तों की दुआ है जब साथ अपना
तो किसी की तोहमत का क्या करूँ

प्रकाश यादव "निर्भीक"