Monday, April 20, 2015

टूट कर बिखर जाना


देख न मुड़कर कभी, जिंदगी नाम है चलते जाना
कौन रुका है इस जहां में आया जो उसे है जाना
क्षणिक है ये प्यार सबका रोको मत करते जाना
किसको है ये पता कब रुकना है फिर चले जाना
साथ जाता नहीं कुछ सब कुछ देकर चले जाना
रंग मंच ये दुनिया सारी फर्ज अदा कर है जाना
आयेगा जो न लौटकर कभी तो पीछे क्यों जाना
खुश रहने दे उसे अब हमें भी तो है वहीं जाना
कटीली है पगडंडियाँ, मगर मंजिल है पहुँच जाना
हौंसला कर न कम कभी, सयाना वही जो जाना
यादें बहुत है जीने के लिए “निर्भीक” ये जाना
दिल दुखता है किसका नहीं ये जख्मी ही जाना
 
 
                                    प्रकाश यादव "निर्भीक"
                                    बड़ौदा – 20-04-2015

Thursday, April 16, 2015

इस जहां से जाने वाले



इस जहां से जाने वाले

इस जहां से जाने वाले,
बिन तेरे अब चैन कहाँ
धरती पर मेरे रखवाले,
बिन आँसू ये नैन कहाँ 

दिन बीतता उलझन में
नींद भरी अब रैन कहाँ
कैसा हूँ अब कौन हूँ मैं
खबर को वो बेचैन कहाँ 

सब रिश्ते है मतलब के
निःस्वार्थ भरा प्रेम कहाँ
बढ़ रही है परस्पर दूरी  
पूछता कुशल क्षेम कहाँ

मोहब्बत की बगिया में
प्यार का वो फूल कहाँ
नफरत की वादियों में
मानता कोई भूल कहाँ  

मौजूद आप जब तलक
थी मायूसी की घटा कहाँ
पलक झपकते उड़ चले
मायूस हो गया ये जहां

डर लगता है दुनिया से
छोड़ न दे कोई ये जहां
है अकेला जग में निर्भीक“
ढूंढेगा फिर वो कहाँ कहाँ

                    प्रकाश यादव “निर्भीक”
                          बैंक ऑफ बड़ौदा
                          बड़ौदा – 16-04-2015  

Monday, April 13, 2015

बेखबर कहाँ चले गए



           बेखबर कहाँ चले गए

हो बेखबर कहाँ चले गए, अब खबर हमारी लेगा कौन
है व्यथित अन्तर्मन अपना , अपनी बात सुनेगा कौन

चंचल चित विचलित हो बैठा, सुकून का अब ठौर नहीं
उत्साहित हो जाऊँ कहाँ अब, स्नेहिल बात करेगा कौन

रहकर दूर पहले भी अक्सर, करीब नजर ही आते थे
दूरी ऐसी हमसे बना बैठे, लेकर वहाँ अब जाएगा कौन

है घर वही आँगन वही, रमन चमन की वो बात नहीं
गमगीन फिजा बदल डाले, ऐसा शक्स अब होगा कौन

छल प्रपंच कुलषित मन, वो सच्चा कोई इंसान नहीं
है दुर्गम पथ इस जीवन का, पथ प्रदर्शक होगा कौन

मिलन न हो पुनर्जनम में, “निर्भीक” को ये मंजूर नहीं
वरना सारा प्यार जगत का , आप सा फिर देगा कौन

                        प्रकाश यादव “निर्भीक”
                        बैंक ऑफ बड़ौदा
                        बड़ौदा – 13-04-2015

Wednesday, April 08, 2015

-: जब जब ख्याल आया :-



 -: जब जब ख्याल आया :-
  
वो जब जब ख्याल आया, बस रब सा नजर आया
धरती पे खुदा गर कोई ,तो उसमें ही नजर आया

उनका ही तो वो प्यार था, जो याद अक्सर आया
डूबती हुई हर कश्ती का, वो पतवार बनकर आया

जीवन के हर मोड पर, जब भी अंधेरा पहर छाया
आंखे मूँद कर देखा तो , वो उजाला लेकर आया

है दृश्य नहीं वो मूर्त , फिर भी उसे हमसफर पाया
अदृश्य शक्ति से उनका , खुशनुमा सा लहर आया

बीती विभावरी जीवन की , वो ले नया सहर आया
चल आगे पथ पर तू अब , उनका ही शहर आया

होगी मिलन उनसे अब तो , अंबर से खबर आया
“निर्भीक” बन चलता चल , वो रूह से अंदर आया


                  प्रकाश यादव “निर्भीक”
                  बैंक ऑफ बड़ौदा ,
                  बड़ौदा – 02-04-2015 

-:व्याकुल मन :-



  -:व्याकुल मन :-

व्यथित व्याकुल मन आतुर है कबसे
मन की वो बात करूँ तो अब किससे
दर्शन को अब तो ये नयन भी तरसे 
चंचल चित तो अब विचलित हो बैठा,

ढाढ़स दे इस दिल को समझाया
नहीं है वो अब फिर क्यों रोया 
चुप हैं जुबां और खामोश निगाहें
अश्रु ले क्यों फिर नयन ये बैठा,

है घर बार वही और है वो बैठक
नहीं रही अब वो पहले की रौनक
चलती सड़क से वो लौटने वाले
मुँह फेर बगल से क्यों चल बैठा,

हर शाम सुबह खबर को आतुर
बेखबर हो अब वो क्यों चल बैठा
है गज़ब नियम नश्वर जगत का
जो प्रिय हृदय हो उसे ले बैठा ,

है आस क्यों फिर पुनः मिलन को
झूठी दिलासा क्यों है अन्तर्मन को
सच स्वीकार क्यों नहीं फिर दिल को
“निर्भीक” जीवन फिर आकुल हो बैठा,


                  प्रकाश यादव “निर्भीक”
                  बड़ौदा 01.04.2015