Thursday, May 14, 2015
-:माँ:-
माँ
तेरे आँचल के
छाव में फिर से
सो जाने को जी चाहता है,
जहां दुनिया की सारी
झंझावतों से दूर
बस तेरी प्यार की
वो अद्भुत दुनियाँ है
जिसमें सुकून के सिवा
कुछ नहीं मिलता,
तेरे हाथ सिर पर पड़ते ही
बिन बुलाये नींद
न जाने कहाँ से
दौड़ी चली आती है,
जिसे बुलाने को कभी कभी
मसक्क्त करनी पड़ती है,
बिन कहे समझ जाती है
सब मनोस्थिति
ये कौन सी शक्ति है माँ
पास तुम्हारे जो
दुनिया में कहीं नहीं मिलती
सिवाय तुम्हारे,
दूर रहकर भी तुम
पास रहती हो अक्सर,
जब जब महसूस होती है
माँ - कमी तुम्हारी और
अपनी ममता की आँचल लेकर
खड़ी रहती हो वरबस
जिसमें फिर से छुप जाने को
ये जी चाहता है........माँ .
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बैंक ऑफ बड़ौदा , बड़ौदा
09 मई 2015 -:कड़ुवा नीम:-
ख्वाब तो ख्वाब है, हकीकत से
इसे क्या लेना
जो न खुली आँखों में, वो
ख्वाब में जी लेना
कडुआ नीम हर तरफ, मीठा उम्मीद
क्यो लेना
तनाव है बहुत दुनिया में, मौका मिले
हँस लेना
जो सच सच ही रहेगा, बेवजह
फिक्र क्यों लेना
काँटों भरी महफिल में, गुलाब सा खिल लेना
पथरीला पथ जीवन का, चुभे
पग पर चल लेना
छूटेंगे संग अपनों का, गम
छिपा कर चल लेना
आना जाना जीवन का, प्यार
सभी से कर लेना
आज जो व कल नहीं, नफरत
दिल में न लेना
है खुदा अपना ही तो “निर्भीक” बन तू
जी लेना
अपना कौन पराया कौन, जिगर
में दफना लेना
प्रकाश
यादव “निर्भीक”
बड़ौदा
– 14-05-2015
Thursday, May 07, 2015
-:कंचन सी हमसफर :-
आज जीवन के
पंद्रह बसंत
संग गुजरे अविरल
तुम्हारे साथ,
कुछ खट्टे
कुछ मीठे
अनुभूति लेकर,
भर दिया तुमने
अनेकों रंग
जीवन में
अपने विवेक, त्याग,
विश्वास और करुणा के,
तुम्हारी उन्मुक्त हंसी
कम करती रही
अक्सर -
मेरे उदासीपन को,
सादगी भरी गुलशन में
उगाये तुमने दो फूल
अपने मधुर यादों के,
जिसे सुबह वो शाम
देख दिल बाग बाग
हो जाता है अपना,
शुक्रगुजार हूँ मैं
उनका जिसने दिया
कंचन सी हमसफर
मेरे जीवन सफर में .....
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बैंक ऑफ बड़ौदा
बड़ौदा -23-04-2015
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