पहली दफा जब मैंने
प्यार किया
न जाने क्यों
उसने इनकार किया
सकुचाती शरमाती
सी देखकर मुझे
तिरछी
निगाहों से मुझे वार किया
मीठी चुभन को
महसूस कर उसने
ओढ़कर ओढ़नी चश्मे
दीदार किया
आती उड़ती जाती
बन तितली सी
फूलों के संग
वो भी मनुहार किया
मधुर मुस्कान
पहली भोर की जैसी
अधखुली नींद में
जैसे शृंगार किया
चमकती रहीं चाँदनी
मुख की बूंदें
मानो रातभर शबनम
फुहार किया
ओझल हो न जाऊँ
फिर से कहीं
बैठ देहरी पर
चुप इंतिज़ार किया
कैसी थी उनकी
अनकही मोहब्बत
अधखिला गुलाब
से इजहार किया
जुबां से बयां
कभी जज़्बात नहीं
दिल से ही दिल
को इकरार किया
ऐसी कयानात अब
कहाँ “निर्भीक”
जिसने जीने को
फिर तैयार किया
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 25-07-2015