Saturday, November 07, 2015

-: इल्जाम लगा दो :-



भरी महफिल में सरेआम इल्जाम लगा दो
दिल न भरे तो इस्तेहार खुलेआम लगा दो

मगर रखना यह याद अपनी ज़ेहन में तुम
सच कभी नहीं जलता बड़ी आग लगा दो

हम तो पले यारों उनके परवरिश में यहाँ  
झुकाया नहीं सिर चाहे कत्लेआम करा दो

बदनामी की साजिश जिंदा नहीं रहती सदा
चाहे तहखाने में सबूत सारे दफन करा दो

आँख से पट्टी तो कभी हटेगी न्यायालय में
गवाहों को तू जज से कितना भी छिपा दो

शराफत की चादर ओढ़ न बन मासूम तुम
हो जाओगे नंगे अगर इसे बदन से हटा दो

अरे दो दिन की खातिर तो आये जहां में
दिल छिपे शैतान को तुम दिल से भगा दो  

खुदा के घर में भी बसर नहीं होता उनका
नापाक इरादों से सौ बार गर सर झुका दो

ऊपर वाले की निगाह से बच नहीं सकता
चाहे सच्चाई की तू सारी रौशनी बुझा दो

है देर कुछ पल का मगर अंधेर नहीं वहाँ
जी चाहे तुम्हें जितना अब कांटे चुभा दो  

“निर्भीक” तो खुद निडर है वो नहीं डरेगा
धारदार हथियार से तू कितना भी डरा दो
                 
                  प्रकाश यादव “निर्भीक”
                  बड़ौदा – 06-11-2015

-: अधूरी मुलाक़ात :-





तिरछी नजरे पूरी रात सोने न दिया
जागता रहा वो लम्हात सोने न दिया

तुम्हें भूल जाऊँ या रखूँ याद सदा
दिल में रही जो बात सोने न दिया

ख़्वाहिश थी सफर साथ चलने की
अधूरी अपनी मुलाक़ात सोने न दिया

कह दूँ दिल की हर एक बात तुम्हें
न कहने की हालात ने सोने न दिया

हर सीप को मयस्सर नहीं स्वाति बूंद
यही एक सवालात ने सोने न दिया

दिल्ली दूर नहीं तुमसे मिलने की                         
उमड़ते ये जज़्बात ने सोने न दिया

तुम्हीं हो मेरी ख़यालों की मलिका 
मन बसे ये खयालात सोने न दिया

यों तो रूबरू न हो सका अबतलक
मोहब्बत की सौगात ने सोने न दिया

कहते सब शायर दिलफेंक दीवाना है
लगा दिल में आघात सोने न दिया

साफ दिल का कद्र कहाँ होता है यहाँ
दुनियाँ की यही करामात सोने न दिया

क्यों किया ज़िकर किसी से “निर्भीक”
आंसूओं की ये बारात सोने न दिया

                  प्रकाश यादव “निर्भीक”
                  बड़ौदा – 04-11-2015

-: बेकरारी :-




तुम्हें देखे बगैर चैन नहीं
ये कैसी बेकरारी हो गई है

काजल लगाई हो पहले भी
अब क्यों कजरारी हो गई है

रह लेते थे तुमसे दूर कभी    
अब क्यों लाचारी हो गई है

जब उठूँ तो तुम्हें ही देखूँ
कैसी अब खुमारी हो गई है

तुम्हारी सूरत देखते देखते
इश्क की बीमारी हो गई है

छुपा लेती हो मुख दिखाकर
आदत ये तुम्हारी हो गई है   

हंसी जो बिखरे लबों पे तेरी
लगे कोई चिंगारी हो गई है

झुलस न जाऊँ प्यार में तेरे
ढंग पतिंगा हमारी हो गई है

ले लो हमें आगोश में अपनी
अब साँझ की तैयारी हो गई है

रह लेंगे रातभर पंखुड़ियों संग
अब तो मेरी बारी हो गई है

देखा “निर्भीक” मनमुग्ध होंठ
बेजान दुनियाँ सारी हो गई है  
            प्रकाश यादव “निर्भीक”
            बड़ौदा – 04-11-2015