Friday, February 26, 2016

-:चुभन:-


जाने कैसी ये रात आई है
पुरानी चुभन साथ लाई है

तेरा वो मुड़ मुड़के देखना
मेरी ये आँखें भर आई है 

सपने तरंग से बचपन के
आज फिर से याद आई है

छिप जाना तेरा शरमाकर
मासूम इकरार वो आई है

हकीकत से नावाकिफ़ जो
वो दुनियाँ में मात खाई है

प्रीत टकरा किसी पत्थर से
दरिया ए दिल पास आई है

महकता वो बाग अपना भी 
किसी ने बुरी नजर डाली है

दूर नहीं कर सकता है कोई
रूह में रूह जो अब समाई है

मत चलो फिर उस जगह
किस्मत ने आग लगाई है

कर ली है दोस्ती “निर्भीक से
क्यों फिर वो रात ले आई है
            प्रकाश यादव “निर्भीक”
            बड़ौदा – 25-02-2016

  

-:मन मीत :-


दो मन मिले दो तन मिले
जीवन पथ पे वो संग चले
अनजान दोनों एक दूजे से
अब हर पल संग संग चले  

रीति जगत की निभा चले
प्रीत प्रेम की वो दिखा चले
पीड़ा हृदय की न देखे कोई
लबों पर मुस्कान लिए चले 

कर दफन सब ख़्वाहिशों को
राहे वफ़ा पर सब भूल चले 
सपनों की दुनियाँ है सपना
हकीकत के साथ साथ चले

कभी फूल, कभी शूल मिले
बिना उफ हर वो पल सहे
उन्मुक्त हंसी ले चेहरे पे
घूंट गमों की बरबस पीये

बहुत कठिन जीवन डगर 
मूलमंत्र अक्सर साथ चले
खुशी उनकी अपनी खुशी 
त्याग समर्पण प्यार करे 

मीत नहीं अब दूजा कोई
“निर्भीक” जबसे मीत बने
अपर्णा सती हुई है हँसकर 
अपमानित जब शिव हुये 
            प्रकाश यादव “निर्भीक”
            बड़ौदा -24-02-2216


-: गुलिस्ताँ ए मोहब्बत:-


इस कदर जुदा मत कर मुझे
फिरोजी लबों से कर तर मुझे

आगोश में ले लो मुझे आकर
मदहोशी में ले चलो घर मुझे

पिला देना थोड़ी तुम और जरा
फिर कर देना चाहो बेघर मुझे

बसंत है तू बसंती शबाब पर
नजर से यूं न कर बेनजर मुझे 

आशिक है बहुत तुम्हारे शहर में
मत समझना बेसुध बेखबर मुझे

फिदा हूँ मैं तेरी इन अदाओं पर
न कर दरकिनार शमों सहर मुझे  

आओ तू गुलिस्ताँ ए मोहब्बत में
भटकाओ नहीं ऐसे दर ब दर मुझे

फूल दिया था तुम फूल ही देना
मत दो तोहफे में तुम खंजर मुझे 

बहुत नाजुक सा है तेरा “निर्भीक”
मत समझना कभी तू पत्थर मुझे

                  प्रकाश यादव “निर्भीक”
                  बड़ौदा – 22.02.2016



-:हुस्न का सैलाब:-


हर सवाल का जबाब हो तुम
फिर क्यूँ पूछते ख्वाब हो तुम

कर दिया दफन कब्र में उसे
अब क्यूँ लेते हिसाब हो तुम  

गर है मोहब्बत चले आओ
पहने क्यूँ ये नकाब हो तुम

दिले दर्द की कोई दवा नहीं
बनते क्यूँ यों कसाब हो तुम  

कोसते रहो तुम बेशक मुझे
नजर में नहीं खराब हो तुम

ले आया खींच कर चौराहे से
बेहतरीन वो शबाब हो तुम

मुझे पीने की तो आदत नहीं
पिलाती क्यूँ ये शराब हो तुम

डूब जाने दो अपनी आँखों में
इश्क का खुला तालाब हो तुम
चुभे है ये कांटे जिसे छूने में   
सुर्ख लबों का गुलाब हो तुम

दर्ज ए राज जिसके पन्ने में
जिलदे बन्द किताब हो तुम 

डूबेगा “निर्भीक” भी इक रोज
हुस्न का जो सैलाब हो तुम
            प्रकाश यादव “निर्भीक”
            बड़ौदा – 20.02.2016


-: खबर नहीं :-



तुम खफ़ा हो मुझसे यह मालूम मुझको  
मगर खता क्या है मेरी मुझे खबर नहीं

रह लोगे मेरे बगैर मुमकिन है तेरे लिए 
आदत तुम्हारी जायेगी यह खबर नहीं

महका दोगे फिर से कोई गुलशन नया
महकेगी मेरी गुलिस्ताँ यह खबर नहीं

नयी सुबह नई दुनियाँ हो तुम्हारी अब
सहर होगा अब सफर में यह खबर नहीं

लौट आना फिर से कभी इस चमन में
गुजारा हो तुम्हारा वहाँ यह खबर नहीं

“निर्भीक”तुमको चाहा है ताउम्र के लिए
भूल जाओगे तुम उसे यह खबर नहीं
                  प्रकाश यादव “निर्भीक”
                  बड़ौदा – 18-02-2016



-: गीत प्रीत की:-



न तस्वीर तेरी
न तुम हो यहाँ
गीत प्रीत की   
मैं कैसे लिखूँ
ज़िकर किया
तुम मुकर गई
स्नेह जिगर से
मैं कैसे करूँ
तुम दूर नजर
दिल पास मगर
इजहार ए मोहब्बत
मैं किससे करूँ
सुनसान पड़ा
मदिरालय तेरा
अधरों से जाम
मैं किसका पीऊँ
रूठो न तुम
अब मधुमास में
ज़ुल्फों से तेरी  
लिपटा कैसे करूँ
तुम बिन बैठा 
मैं मधुबन में
मकरंद का मधुपान  
फिर किसका करूँ
आओ न बनकर
तुम तितली
फूलों संग भौंरा
तुमसे मिलूँ
न तस्वीर तेरी
न तुम हो यहाँ
गीत प्रीत की
मैं कैसे लिखूँ
      प्रकाश यादव “निर्भीक”

      बड़ौदा – 15-02-2016 

-: सुकून ए सुबह:-


शबनमी रात की ख्वाब हो तुम
सकूँ ए सुबह की गुलाब हो तुम

लड़खड़ाते आया हूँ तेरे मैखाने में
सबसे पुरानी जो शराब हो तुम

बसर नहीं होगा अब तुम्हारे बिना  
रखती खयाल बेहिसाब हो तुम

निगाह कहीं अब टिकती ही नहीं
मेरी नजर में लाजबाब हो तुम

छट जायेगी स्याह रात भी कभी   
मेरी जिंदगी का आफ़ताब हो तुम

पथ भ्रमित कभी हो नहीं सकता
सफर की डगर में आदाब हो तुम

चाह नहीं मुझे किसी दौलत की
बेसकीमती कंचन सवाब हो तुम

चैन व आराम है तेरी पनाह में  
फ़लक में मेरा माहताब हो तुम

पढ़ना बाकी अभी “निर्भीक” को
खुद में समेटे वो किताब हो तुम 
              प्रकाश यादव “निर्भीक”

              बड़ौदा -14-02-2016 

-:मधुर मिलन :-



आओ न आज
गले लगा लूँ तुम्हें
भर लूँ आगोश में  
सबकुछ भूलकर
बसंती मौसम में
पीले सरसों के बीच
लगा दूँ तेरे
गुलाबी गालों पर
अबीर गुलाल
रंगीले फागुन में
होली जो सामने है  
न रहे कोई दूरियाँ
हमारे दरमियाँ
गलत फहमियों के
जो न जाने बेवजह
टपक पड़ती है
खटास डालने को
ढक लो मुझे
अपनी ओढनी से
ताकि किसी की नजर
न पड़े हम दोनों पर
फिकर न करो
क्या सोचेगी दुनियाँ
जी लो “निर्भीक” होकर 
यह पल जीवन का
शुक्र है अखबार का 
जिसे पढ़ा सुबह सुबह 
मिलन दिवस है आज  
अपने अजीज़ को
अजीम बनाने का
महकते फिज़ाओ के
बहकते अंदाज में .........
            प्रकाश यादव “निर्भीक”
            बड़ौदा – 12-02-2016


-:व्यथित मन :-


मन अक्सर
व्यथित होता है
यह जानकार कि
मन की बात
मन से
मन के मुताबिक
क्यों नहीं कर पाता
झुँझला उठता है
अनायास खुद ही
खुद से आजिज़ होकर
क्यों नहीं जी पाता
खुद के लिए दो पल
जबकि
पल दो पल की तो
जिंदगी है यह
जीने के लिए 
उलझा रहता है
बेफ़जुल बातों में
जिसका कोई वजूद नहीं
स्वयं से ,
गुजरा पल कभी
वापिस नहीं आता
और आने वाला पल का
कोई ठिकाना नहीं
तो फिर क्यों नहीं
जिया जाता है
इस पल को मन से
मन के मुताबिक
मन के लिए
ज़िंदादिली से
खिन्न “निर्भीक”बस 
इसी बात से है ...........
            प्रकाश यादव “निर्भीक”

            बड़ौदा – 11-02-2016 

आदमी अच्छा होगा

कोई ताकत उसे तो अलग नहीं कर पाया
शायद माँ का सबसे प्यारा वो बच्चा होगा

उसके दुश्मन है बहुत आदमी अच्छा होगा
याद करते है सभी वो दिल का सच्चा होगा

खाके ठोकर भी वो रुकता नहीं है रस्ते में
 मन्ज़िलें पाने का जिस में भी होसला होगा

सभी मज़हब का तो किया वो जो इज्जत
परवरिश उनके माँ बाप का उम्दा होगा

टकरा कर लहरों से आ गया फिर किनारा
कहीं दूर से अजिज़ कोई तो पुकारा होगा

छुपके देखता था कभी अपनी निगाहों से
आज खुद ही खुद से वो छुपाया होगा

डूबने को एक दरिया ही तो काफी है
समंदर यही सोच डूबने से बचाया होगा

गेसूओं को होले से सहलाया था कभी
आज चुपके से कोई उसमें सोया होगा

छोड़ दो तमन्ना अब “निर्भीक” उसकी
ज़ख्म अभी भी हरा उसका रहा होगा
                  प्रकाश यादव “निर्भीक”
                  बड़ौदा – 09-02-2016


-:शबनमी रात:-



पल दो पल का साथ तेरा
अहसास तुम्हारा दिल में है
शबनम से भीगीं रातों में
खुशबू वही महफिल में है

खो गया तुम्हारी बातों में
अदा जो तुम्हारी कातिल है
तुम समझो इत्तेफाक इसे
हुआ बहुत कुछ हासिल है

हमसफर कुछ देर ही सही
महकता लब ए साहिल है
छुअन होले से अंगुलियों के
सिरहन रग में शामिल है  

किसे कहूँ टीस जिगर की
समझे सब तो जाहिल है
ये दुनियाँ है सौदागिरों की
प्रेम को समझे फाजिल है

वंदना किसकी करूँ यहाँ
सब बेवफाई में शामिल है  
जब संग तू फिकर क्यों
तू मस्त मग्न गाफ़िल है

बहुत कठिन है प्रेम डगर
हर शख्स यहाँ संगदिल है  
एक तुम्हीं जिसे कह सकूँ
“निर्भीक” के तू काबिल है
            प्रकाश यादव “निर्भीक”
            बड़ौदा – 04-02-2016 

-: किसके लिए :-



यौवन के
दहलीज में जाकर
सुंदरता को
खुद में समेटे
चंद्रमुख पे
लिए बिंदिया
ये हिरनी सी
आँखों वाली
फिरोजी होंठों पे
मुस्कान लिए
सजी हो ऐसी
किसके लिए -
नयनों में
काजल लगा कर  
ज़ुल्फों को
यों बिखराकार
देहरी पर  
खड़ी आकुल
खुली बाहें लेकर
नेह निमंत्रण को
सप्रेम आतुर
फिर इंतिज़ार कर
रही हो तुम
किसके लिए –
मासूमियत
चेहरे में लाकर
कंचन कामिनी सी
काया लेकर
किवाड़ की ओढ़ में
सकुचाती सी
बलखाती सी
लुभावनी बनी हो
तुम किसके लिए ।
      प्रकाश यादव “निर्भीक”

      बड़ौदा – 03-02-2016