Thursday, June 23, 2016

-:बारिश का मौसम:-



बारिश का मौसम 
तेरा मुसकुराना 
ज़ुल्फों से टप टप 
बूंदों का गिरना 
खुला आमंत्रण 
नशीली आँखों से तेरे 
भींगा बदन और 
फिर तेरा इतराना 
कोयल की कुहु कुहु 
पवन मस्ताना 
खुशबू से महके 
बगिया कोना कोना 
चलो आज ढूँढे 
फिर वही आशियाना 
जहां पर दो पल का 
बना था ठिकाना 
बादल की गड़गड़ाहट 
बिजली का चमकना 
फिर बाहों में तेरा 
अनायास सिमटना 
स्पर्श की उष्णता में 
तेरा पिघल जाना 
नरम पखुड़ियों सा 
टूटकर बिखर जाना 
अधखुले होंठों की 
माधुरी मदिरा 
बरसाती घटा में 
तेरा खिलखिलाना 
बारिश का मौसम और 
तेरा मुसकुराना ....


प्रकाश यादव निर्भीक
बड़ौदा – 22-06-2016

-:अंगुलियों के सहारे :-


पकड़कर अंगुलियाँ
लड़खड़ाकर चला था
नन्हें कदमों से
गगन को छुआ था
न थी कुछ फिकर
न टूटे थे सपने
बाबूजी के संग जब
सफर पर चला था
शाम के पहर में
लेकर इंद्रधनुषी इरादे
समंदर किनारे मैं
पास में ही खड़ा था
वो बचपन की बातें
वो सतरंगी ख्वाहिशें
न होगी कभी पूरी
कभी न डर था
जीवन के गोधुली में
सितारे भी टूटे
जिंदंगी के संबल
वो सहारे भी छुटे
नरम सी अंगुलियों को
पकड़ने वाले
सफर में वो भी
अचानक ही रूठे 
आसमान को देखूँ
या समंदर में झांकू
भीगें पलकों से
अब कहाँ कहाँ खोजूँ
खड़ा हुआ था
कभी जिनके सहारे
उन्हीं अंगुलियों को मैं  
आज निःसहाय खड़ा हूँ
            प्रकाश यादव “निर्भीक “

                बड़ौदा – 15-06-2016 

-:सिसकती उम्मीदें:-


टूटता परिवार   
बिखरता समाज
उपेक्षित बुजुर्ग
कराहती बीमार माँ 
सिसकती उम्मीदें  
एक पिता की
खोजती निगाहें
उन सपनों को
जिनको सँजोये  
रखा बीत गए
बरस दर बरस
जीवन के आखिरी
पड़ाव की सीढ़ी तक
चिलचिलाती धूप में
जलाता रहा शरीर
ठंढक का अहसास लिए
सुखद भविष्य में
दुनियाँ के सुखों से वंचित
निःसहाय मजबूर बाप
धुएं में लिपटी
आसूओं को पीती मगर
चेहरे पर ममत्व को लेकर
जीती रही एक माँ
बिना किसी स्वार्थ के 
भौतिकता के आगोश में
जकड़ी वही उम्मीदें  
टूटती नजर आती है
आज के परिपेक्ष में
पश्चात्य संस्कृति से लिपटकर
यह भूलते हुये कि
कभी न कभी सबको
इस दौर से गुजरना है
            प्रकाश यादव “निर्भीक”

                बड़ौदा -15-06-2016  

-:मिले हो सफर में:-


मिले हो तुम सफर में 
महज इत्तेफ़ाक है
समझ मत लेना  
तुझ बिन सब खाक है
हाँ हंसी के कुछ पल
गुजरे है साथ तेरे
सुनो ! मेरा भी एक
खुशहाल घर बार है  
किसी के सहारे 
खुश रहा नहीं कोई 
दिल लगाकर तोड़ना
सदियों से व्यापार है
लौटकर परिंदा फिर
आता है खुद घोंसला 
बाहरी दुनियाँ में 
बस क्षणिक बहार है
ये रूप, ये रंग, ये अदा
जो मिले है तुझको
कर लो आँखें बंद
तो सब बेकार है
हो तुम यादों में
यह खुशनशीबी है मेरी
रहोगे ताउम्र योंहि  
तेरा स्नेहिल जो प्यार है  
गर चाहा किसी को
तो चाहो उम्र भर
जीवन का यही तो
एक अद्भुत शृंगार है
तुम मिले हो सफर में
यह महज इत्तेफाक़ है
            प्रकाश यादव “निर्भीक”
            बड़ौदा – 14-06-2016


-:प्रेमाधिकार:-


प्रेम में अधिकार
दिया नहीं जाता 
बल्कि खुद ब खुद
हो जाता है 
एक दूसरे पर  
प्रेमरस भिंगो देता है
प्रेमालाय में -
प्रेमी को इस कदर
कि दो जिस्म होकर भी
तन और मन से  
एक जान रहता है वह   
बिन कहे महसूस
कर लेता है हमेशा  
मन की भावनाओं को
जब भी जरूरत होती है
एक दूसरे की  
शर्तो पर नहीं होती है
कभी सफर जीवन में
प्रेम डगर पर
इसमें तो अक्सर
कटु वाणी भी मधुर लगती है
एक दूसरे को
चाहे जितना चाहो
दूर करने को खुद को
दूर हो नहीं पाता
दूर होकर भी कभी
क्योंकि प्रेम एक आत्मीय
बंधन है पारस्परिक
मधुर रिश्तों के
जिसे देखा नहीं बल्कि
महसूस किया जा सकता है
अन्तर्मन की दृष्टि से .......
            प्रकाश यादव “निर्भीक”

                बड़ौदा – 10-06-2016