आओ जी लें जीभर
अपनी हसरतों को
कल्पनालोक में
क्योंकि यहाँ कोई
रोक टोक नहीं होता
हकीकत की दुनियाँ में
कांटे चुभते है अक्सर
क्योंकि गुलशन में
फूलों के खुशबूओं को रौंदने
खड़े हजार होते है
यह सच है सपने
सच नहीं होते अक्सर
मगर पलभर ही सही
स्वप्न में जी लेता है
कोई अपनी पूरी जिंदगी
मुकद्दर में ख्वाबों को
मिले जगह जरूरी नहीं
मगर ख्वाबों में
मुकद्दर को संवार ले
यह हमारे वश में है
चलो बुन ले एक चादर
कल्पना के धागों से
ओढ़कर सो जाय
सपनों की दुनियाँ में
हकीकत से कवि क्या
वास्ता ...
आओ जी ले जीभर
अपनी हसरतों को .......
प्रकाश यादव “निर्भीक”
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