आ जाना फिर
कभी मिलने तुम
मुझसे उसी जगह
उसी मोड पर
जहां से शुरू हुई थी
सफर की मधुर शुरुवात
तुम्हारे साथ
अनजान राहों में
खोल देना गठरी
अपनी नाराजगी की
बता देना दिल में
उबल रहे जज़्बातों को
क्योंकि ठहरा हुआ पानी
अक्सर निर्मल नहीं होता
बह लेने दो नीर
अपने नयनों से
खारे आँसू बनकर
क्योंकि ---
समंदर के जल से
कभी प्यास नहीं बुझती
मगर हाँ --
सुन लेना थोड़ी सी
बात मेरी भी
जो अनकही रह गई है
हमारे दरमियान
अधूरी मुलाक़ात में
जो लबों तक आकर
रुक गई अक्सर
कहते कहते अपनी तमन्ना
किसी सुनहरे पल के
इंतिज़ार में ......
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 12-07-2016
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