ओ रे बाबू तुझ बिन जियरा कहीं नहीं मोरा लागे
होंठ मलिन और नयन से आँसू बरबस बहते जाये
सोचकर यह दिनभर बैठी वो सांझ ढले घर आये
सब आये पर तुम न आये यह देख मन घबराये
क्यों दिलासा दिल को दे तुम खुद ही रूठा जाये
साथ लिया संग चलने को फिर क्यों पथ भरमाये
मैं अकेली जीवन पथ पर पग कांटे चुभते जाये
उफ़ न बोलूँ किसी से अब तो दर्द में बीता जाये
राह बता दे मुझे भी तुम जो राह तुमने अपनाये
आ जाऊँ मैं भी पीछे से, तुम बिन रहा
न जाये
भाई भतीजा नाते रिश्ते मतलब को मिलने आये
जो प्रीत दिया है तुमने अब कछू नहीं मुझे भाये
झूठा जगत ये झूठी काया वो माया जो भरमाये
बहुत हो गई मोह जियन की अब न जिया जाये
समझ परे दुनियाँ की लीला, यह कौन
समझाये
समझ न आया तेरा जाना ये मन क्यों मुरझाये
जब देखूँ मुँह बच्चों के तो मन फिर खिल जाये
याद आये जब चेहरा तेरा नयन तो भींगा जाये
कैसे जीऊँ बनकर “निर्भीक” मुझे समझ न आये
दे दे आकर बल अन्तर्मन को आँख अंधेरा छाये
प्रकाश
यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 27-10-2015
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