Thursday, January 26, 2012

तेरे जाने का कोई गिला शिकवा तो नहीं
मगर बगैर तेरे जीना भी मुमकिन तो नहीं

शकुन से जिओ तुम यही तो चाहत थी मेरी
अपने सफ़र का फिक्र तो हमने किया ही नहीं

गुनाह तो है अक्सर राह ए इश्क में चलना
कांटे चुभने का ख्याल जेहन में आया ही नहीं

भूल जाना आसन होगा तुम्हारे लिए लेकिन
भूलने का जहमत हमने कभी किया ही नहीं

ख्वाब तो होते ही हैं अक्सर टूट जाने के लिए
ख्वाबों में तुम्हे देखना अब तलक छोड़ा ही नहीं

पुरी हो तेरी हर अधूरी ख्वाहिश जीवन सफ़र में
"निर्भीक " की तमन्ना अब कोई बाकी है ही नहीं

प्रकाश यादव "निर्भीक"
बैंक ऑफ़ बड़ोदा
सोनापुर
०९-१२-2011

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