Sunday, July 18, 2010

-: बातें अनकही हुई:-

फाइल के पन्ना दर पन्ना,
पलटते समय रोक लेती है,
तुम और तुम्हारी झील सी आँखें,
रुक जाता हूँ मैँ क्षणभर,
तुम्हारी नजरों से
अपनी नजरें मिलाते हुए,
कोशिश करता हूँ पढने की,
तुम्हारी नयनों की भाषा,
फिर पलटता हूँ पन्ना आगे का,
काम करते हुए और -
एक बार फिर रोक लेती है,
तुम्हारी लम्बी काली रेशमी जुल्फें,
जो शायद छुपा लेना चाहती है मुझे,
अपने गेसूओं में,
कैद होने के डर से,
आगे बढ जाता हूँ मैं,
बढते समय आगे अचानक,
मिल जाती हो तुम फिर,
अपनी मधुर मुस्कान के साथ,
कुछ कहना चाहती हो शायद तुम,
मगर कहकर भी कुछ कह नहीं पाती,
और रह जाती है बातें सारी,
एक बार फिर अनकही हुई...

-: प्रकाश यादव 'निर्भीक'

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