Sunday, July 18, 2010

-: एक ख्वाब टुटा हुआ :-

जख्म को मत इतना कुरेदो कोई
कि फिर से यह हरा न हो जाए
वरना कांटो भरी राहों में चलना
फिर से हमारा मुश्किल हो जायेगा

एक ही तो गुलाब था जिन्दगी में
जिसे देख मुस्कुराते थे कभी हम
उसका न होने का अहसास न कराओ
वरना फिर संभलना मुश्किल हो जायेगा

अधुरी ख्वाहिश रह गई तो क्या हुआ
पूरी होती ख्वाहिश कहां किसी की यहां
अधुरेपन में ही यहां जीने का मजा है
वरना सफर में हमसफर याद आती कहां

दूर होकर भी हरवक्त आसपास है वो
जीवन के हरपल में एक श्वांस है वो
तमन्ना पूरी हुई नहीं हमारी तो क्या हुआ
जिन्दगी का टुटा हुआ एक ख्वाब है वो

मजबुर थे हालात से हम दोनों इस कदर
चाहकर भी न बन सके हम हमसफर
दूर रहकर ही बांट लेगें सारे गम अपने
"निर्भीक" की तरह कट जायेगा जीवन सफर

प्रकाश यादव "निर्भीक"

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