बेखबर कहाँ चले गए
हो बेखबर कहाँ चले
गए, अब खबर
हमारी लेगा कौन
है व्यथित अन्तर्मन
अपना , अपनी बात सुनेगा कौन
चंचल चित विचलित हो
बैठा, सुकून का अब ठौर नहीं
उत्साहित हो जाऊँ कहाँ
अब,
स्नेहिल बात करेगा कौन
रहकर दूर पहले भी
अक्सर, करीब नजर ही आते थे
दूरी ऐसी हमसे बना बैठे, लेकर
वहाँ अब जाएगा कौन
है घर वही आँगन वही, रमन
चमन की वो बात नहीं
गमगीन फिजा बदल डाले, ऐसा
शक्स अब होगा कौन
छल प्रपंच कुलषित मन, वो सच्चा
कोई इंसान नहीं
है दुर्गम पथ इस जीवन
का, पथ प्रदर्शक
होगा कौन
मिलन न हो पुनर्जनम में, “निर्भीक”
को ये मंजूर नहीं
वरना सारा प्यार जगत
का , आप सा फिर देगा कौन
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बैंक ऑफ बड़ौदा
बड़ौदा – 13-04-2015
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