न जाने क्यों
आज फिर
याद आने लगा है
बाबूजी का प्यार
बेहद – बार बार
अधखुली नींद में ,
होती है आज फिर से
उनकी परछाई के साथ
एक अदभूत दीदार,
फेर देते है हाथ अपना
सिर के ऊपर होले से
बिना कुछ कहे,
याद दिला देते है अपनी
मौजूदिगी की मुसकुराते हुये
बिना कुछ बोले हुए
सब कुछ बोल जाते है
कौन कहता है जान नहीं होती
इस बेजान साया में
सच तो यह है कि
जान बसती है इसमें
जिनकी फिक्र हैं इनको
जान से भी ज्यादा
क्योकि शरीर ही तो नश्वर है
आत्मा तो नहीं ......
शायद इसे ही कहते है
आत्मिक प्यार
बाबूजी का प्यार
- प्रकाश यादव “निर्भीक”
- बैंक ऑफ बड़ौदा , बड़ौदा
- 07-01-2015
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