वो धुंधला सा इक साया अब मेरे आँखों में रहता है
बहुत ही दूर है वो मुझसे मगर मेरे यादों में रहता है
छलक जाते हैं ये आँसू अपने उसे मुसकुराते देखकर
कैसे समझाऊँ मैं उसे वो हमेशा ख़यालों में रहता है
वादे जो किये थे कभी हँसकर अब कुरेदता जेहन में
कर न सका जो ख्वाहिशे पूरी वो मलालों में रहता है
लेता था जो खोज खबर अब बेखबर है इस दुनिया से
कोई बताये मुझे अब वो कहाँ छुपा बादलों में रहता है
गुफ़्तगू कर जीस्त की हकीकत बताया था जो अक्सर
अब करूँ वो गुफ़्तगू कैसे वो किन हालातों में रहता है
ख्वाबों में ही कर लो अब हर बात दिल की “निर्भीक”
दस्तूर है दुनिया की सोच अब वो वादियों में रहता
है
प्रकाश
यादव “निर्भीक”
बड़ौदा, 28-0-2015
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