Saturday, March 14, 2015

ख़्यालों में रहता है



वो धुंधला सा इक साया अब मेरे आँखों में रहता है
बहुत ही दूर है वो मुझसे मगर मेरे यादों में रहता है

छलक जाते हैं ये आँसू अपने उसे मुसकुराते देखकर  
कैसे समझाऊँ मैं उसे वो हमेशा ख़यालों में रहता है

वादे जो किये थे कभी हँसकर अब कुरेदता जेहन में   
कर न सका जो ख्वाहिशे पूरी वो मलालों में रहता है

लेता था जो खोज खबर अब बेखबर है इस दुनिया से
कोई बताये मुझे अब वो कहाँ छुपा बादलों में रहता है

गुफ़्तगू कर जीस्त की हकीकत बताया था जो अक्सर
अब करूँ वो गुफ़्तगू कैसे वो किन हालातों में रहता है

ख्वाबों में ही कर लो अब हर बात दिल की निर्भीक”
दस्तूर है दुनिया की सोच अब वो वादियों में रहता है   


                        प्रकाश यादव “निर्भीक”
                        बड़ौदा, 28-0-2015  

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