बाबूजी -
आज फिर माँ रो पड़ी
सुबह – सुबह फोन पे
बात के दरमियां
आपको लेकर,
नहीं जाती है अब
आँगन से बाहर
दरवाजे की ओर
पहले की तरह,
डबडबाए आँखों से
देखती रहती है
आँगन की वो गली
जिस होकर आते थे
आप अक्सर
माँ को पुकारते हुये,
सब हैं घर पर
मगर कमी खलती है
आपकी सबको
जीवन का सत्य है यह
सब जानते हैं
फिर भी दिल नहीं मानता
आपका चले जाना
दूर - बहुत दूर
अपनी दुनियां में
जहां से लौट आना
मुमकिन नहीं किसी के लिए ॰
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा
- 04-03-2015
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