Saturday, March 14, 2015

-:मलाल :-





दूर होकर करीब न होने का मलाल रहता है
करीब हो कोई तो दूरी का न ख्याल रहता है

अजीब दास्तां है इस जिंदगी की अपनी यारो
भूलना चाहो जिसे वो अक्सर ख्याल आता है

क्यों करता है कोई किसी से स्नेह ही इतना
खबर है उनको भी कोई उनके लिए रोता है

समंदर किनारे बैठ लहरों को निहारता कोई
पत्थर बन हर अक्स को खुद ही बहाता है

फ़लक में बेसब्री से ढूँढता है कोई अपने को
मौजूद हैं सब बस वो ही नजर नहीं आता है

नहीं आएंगे लौटकर वो अब जहां में फिर से
मगर ये नादां दिल उसी इंतेजार में रहता है

खाक ए सुपुर्द होना है सबको एक दिन यहाँ
“निर्भीक” को जिंदगी अब बेजार नजर आता है
 
                                                प्रकाश यादव “निर्भीक”
                                                 बैंक ऑफ बड़ौदा
                                                16-02-2015

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