अक्सर ख़यालों में
आना आपका अच्छा लगता है
कुछ देर ही सही
पर साथ आपका अच्छा लगता है
वो बातें वो
मुलाकातें जो रह गई अधूरी अब तलक
ख्वाबों में ही
गुफ़्तगू कर आपसे वो सच्चा लगता है
जिंदगी के रफ्तार
में मशगूल हो गए हम इस कदर
जीवन का हर
रिश्ता अब तो बस कच्चा लगता है
निभानी है
दुनियादारी बस यही सोच कर चलना है
छल प्रपंच भरी दुनियाँ
में तो प्यारा बच्चा लगता है
हुई न मुलाक़ात आपसे
सफर के आखरी मुकाम पे
शायद सपनों में
ही मिलते रहेंगे अब ऐसा लगता है
छोड़ दे मुहब्बत अब
गम की दरिया से तो “निर्भीक”
बाबूजी संग
मुस्कुराना सदा सबको अच्छा लगता है
प्रकाश
यादव “निर्भीक”
बैंक
ऑफ बड़ौदा ,
बड़ौदा
18-03-2015
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