बादल बन बाबरा
मंडरा रहा है इर्द
गिर्द
ऊंचे पर्वतों में
गगनचुंबी तरुवर के
हरीतिमा आगोश में
मधुर स्पर्श लेकर
ढूंढ रहा है बेसब्री से
अपनी प्रियतमा को
मधुमास की मादकता में
मदहोश होकर
एक झलक पाने को
व्याकुल है विरह मन
मिलन की मिठास में
मेघाच्छादित अंबर
भिगो रहा है तन बदन
कलरव गान विहग के
गूंज रही है घाटियों
में
झरना के झर झर
कर्णप्रिय ध्वनि के साथ
और उधर से आ रही है
हरे रंग के वसन में
सज धज कर कामिनी
भीगती हुई धीरे
धीरे
झमाझम बारिश के
शीतल बूंदों में
अपने प्रियतम से
मिलने को शर्माती हुई
न देखते हुए भी
दिख जाती है एक दूसरे
को
चेहरे में प्रस्फुटित
आभा
प्राकृतिक छटा के बीच
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 16-07-2016
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