झरना झर झर झरे
भिंगों कर बदन तेरे
करके स्नेहिल स्पर्श
निर्मल हो नीर बहे
मादकता लेकर लटों में
टप टप जो बूंद गिरे
पी लूँ मैं मधुमास में
अधरों से मधु मिले
मीन कामिनी सी काया
अदा तेरे मृगनयनों के
कैसे आगे चले पथिक
अप्सरा देख मुनि भटके
संगमरमर संग हो
निखरा
उन्मुक्त हो जल बिखरा
छींट पड़ा जा राहगीर पर
आतुरता से वह जब गुजरा
बिन घटा जब बारिश हुई
तन मन में जो कशिश हुई
चहक उठी गूंज खगों की
महसूस जब वो तपिश हुई
छूकर पवन मस्तानी चली
देख देख फिर सांझ ढली
रजनीगंधा महके रात्रि
में
“निर्भीक” को वो मोह
चली
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 05-07-2016
No comments:
Post a Comment