बादलों को भेजकर
अपने आंसुओं के संग
ताकती विरहन राह को
पिया दरश को हर क्षण
बारिश में भिंगोकर
गोरी अपना तन बदन
आतुर है मिलन को
पिया के संग अंग अंग
कोयल करे कुहु कुहु
पायल बाजे छन छन
सांझ पड़े आँगन में
उद्वेलित हुआ हृदय मन
कौन जाने दर्द विरह
रात कटी दिन तरह
पर होते तो उड़ जाती
तड़पती न कभी इस तरह
लौट आओ गाँव पिया
कहती रुंधी सूनी जिया
चकचौंद शहर ने उनसे
सबकुछ है छिन लिया
लेकर गंध मधु पुष्प की
भँवरा भी आया मधुमास में
देख दृश्य मयूरी मन मचले
ताकती रहती इसी आस में
प्रकाश
यादव “निर्भीक”
बड़ौदा
– 04-07-2016
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