बदनाम कर
किसी को नाम कमाना
बहादुरी हरगिज
नहीं है ये पैमाने में
बड़ी मशक्कत
होती है किसी को यहाँ
जलाकर खुद को
ही शोहरत कमाने में
क्षणिक है
तुम्हारी वाहवाही समझ ले
वक्त बदलते
देर नहीं इस जमाने में
इतराता क्यों
है तू झूठी तारीफ से
सच उगलते हैं
सब यहाँ मैखाने में
तुम्हारी फितरत
होगी जगजाहिर कभी
शर्म तो
तुम्हें भी होगी मुंह छुपाने में
दामन में दाग
लगाना बड़ा आसान है
उम्र बीत
जाती है किसी की छुड़ाने में
खुद से नहीं
पर उस खुदा से तो डर
जिसे अफसोस
होगा तुम्हें बनाने में
हम तो सह
लेंगे बदनाम ए सितम
सुकून से
क्या सो पाओगे सिरहाने में
हकीकत सामने
आयेगी कभी न कभी
सिर न उठेगा
तेरा ही सूरत दिखाने में
“निर्भीक”
बना तुम लोगों की जहर से
फिर भी न
हिचकेगा वो मधु पिलाने में
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 29-07-2015
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