Friday, August 21, 2015

-: राज की बात :-





गुजारिश ही की थी कोई जबरदस्ती नहीं
इस कदर बिफर जाना तेरा लाजमी नहीं

अपनों से ही उम्मीद रखते है सब यहाँ
गैर समझ सलूक करना बात अच्छी नहीं

हाँ मजबूर हूँ मैं दिल से चाहने को तुम्हें
तुम्हारा रूठ जाना मुझसे समझदारी नहीं

खता किसी की सजा मुझे क्यों देती हो
तल्खी तेरी नजाकत में है तुम्हारी नहीं

मालूम क्षणिक गुस्सा है तुम्हारा मुझपे
पिघल जाएगा फिर ये जिगर है देरी नहीं

यही तो खासियत है तेरी मासूमियत की  
लाख चाहो नजर हटाना कभी हटती नहीं  

मन की मर्जी से जीती हो फ़क्र है तुमपे
मेरे मन की कभी कभार क्यों सुनती नहीं

बेचैन होता हूँ बस तुम्हारी नाराजगी पर
नाराज होने का भी हक़ मुझे देती नहीं

तुम्हें चाहा न जाने क्यों फिर “निर्भीक”
राज की ये बात तुम क्यों बताती नहीं

                        प्रकाश यादव “निर्भीक”
                        बड़ौदा – 06-08-2015  

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