नहीं लिखुंगा अब
मैं तुम्हारा नाम
अपने किसी तहरीर में
सिर्फ तुम्हारी खातिर
अब सिर्फ इज़हार
कर लूँगा अपने
अहसासों के महकते
ख़्वाहिशों को
कोरे कागज में
वक्त बेवक्त चुपचाप
यह समझकर
पढ़ लेना शब्द मेरे
कि हर शब्द
तुम्हें देखकर ही
उकेरा गया है
दिल की कलम से
तुम्हारी झुकी पलकें
माथे की बिंदिया
बैगनी और पीले
रंगो का अद्भुत
समागम तुम्हारे वस्त्रों के
जो मनमुग्ध करते है
अक्सर मेरे मन को
फिरोजी होंठों से
लबरेज तुम्हारा मुखमंडल
काले बालों से होकर
चमकती सुनहरी बाली
गले में चाँदनी
बिखेरती वो हार
और तुम्हारा मंद मंद
मुसकुराता चेहरा
जैसे शादी के मंडप पर
न चाहते हुये भी
देखना चाहती हो
अपने प्रियवर को
चुपके से ...............
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 05-08-2015
No comments:
Post a Comment