Wednesday, August 26, 2015

-:सफर चाहता है:-





ऐसे न देखो
छुपकर
खंभे की ओट से
तुम्हें देखने को
जी और
तरस जाता है
न चिढ़ाओ
हँसी की लबरेज से
करीब जाने को
मन मचल जाता है
भोली भाली
सीधी हो कितनी
देख तुम्हें बादल
योंहि बरस जाता है
लतिका लपेट
रखी हो संग अपने
लिपट जाने को
जिगर चाहता है
इंद्रधनुषी कपड़ो में
समेटी हो खुद को
अनायास आँखें भी
वही अटक जाते हैं  
कहाँ से लायी हो
कांतिमय बहार
साथ अपनी
चकोर बन
निहारने को ये
नजर चाहता है
मालूम तुम्हें पाना
मुमकिन नहीं
कुछ पल ही
संग जीने को
जीवन सफर चाहता है ................
            प्रकाश यादव “निर्भीक”
            बड़ौदा – 24-08-2015

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