तुम्हें देख
देखकर मैं जीऊँ
ये प्यार
तुम्हारा अनुपम है
तुम दूर नजर
से बैठी हो
व्याकुल
तुम्हारा प्रियतम है
नीर बहाये जब
इन्द्र यहाँ
कहे सब बारिस
उत्तम है
क्या जाने
पीर जिगर का
शची बिन जीना
लघुतम है
जब सावन
रिमझिम बरसे
दृश्य यह
कैसा मनोरम है
देखूँ भींगा जो
बदन तुम्हारा
लगे तू कितना
सुंदरतम है
झीनी झीनी चुनरियाँ
तेरी
निखरे ये काया
सर्वोत्तम है
टप टप टपके बूंदें
बालों से
ध्वनि यह भी
मधुरतम है
रुन झुन स्वर
तेरे पायल के
कर्ण प्रिय
तो अधिकतम है
आओ न तुम
मेरे आँगन में
गैरों ने
ढाहा बहुत सितम है
संबंध हमारा प्रेम
हृदय का
जीवन में ये
अमूल्यतम है
तुम बिन है अधूरा
“निर्भीक”
छाया आगे
घनघोर तम है
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा 02-08-2015
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