ये रेशमी
साड़ी
रेशमी बदन पे
तेरी
क्या निखरती
है !
झुकी गर्दन
हंसी लबों पे
बिखरे ये
जुल्फ तेरे
अप्रतिम नजारे
क्या बिखेरती
है !
ये खूबसूरती
सहेज कर रखना
जिसे देखकर
सहज हो जाता
हूँ
मैं अक्सर
असहजता में,
तुम्हारी
अनदेखी
बुरा नहीं
लगता
मुझे तो बस
बेपनाह
मोहब्बत है
तुमसे
और
तुम्हारी
स्निग्ध
मुस्कान से
जो मुस्कराकर
ये
कहती है
एकतरफा प्यार
भी
तो पाकीज़ा है
इस जहां में
जहाँ हर किसी
को
मयस्सर नहीं
होता
तुम्हारी
आँचल में
छुप जाने को
मखमली अहसास
तले
ताउम्र बेखबर
बस तुम्हारा होकर ..................
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 21-08-2015
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