गाँव के
मधुरम छाव में
व्यतीत मधुर
अदभूत पल
सावन की बारिस से
हरित भरित
खेत खलिहान
हरे रंगों से
अच्छादित हरीतिमा
ओढ़े सजी
दुल्हन सी प्रकृति
जलमग्न वो
कमल पुष्पदल
लहलहाते झूमते
धान की बालियाँ
अठखेलियाँ करती
सहेलियों के संग
नई नवेली
ब्याही सिंदूरी वधू
छुप छुपकर
आम की डाली से
रोपणी करती
गाती विरहन
बुलाती पिया को
परदेश से कि
मोरा सावन तो
सुना बिता जाए
हरी चूड़ियों की
लुभावनी खनक से
टर्ट टर्ट करती
मेंढक के ढ़ोल नगाड़े
झींगुर की सुरीली
बांसुरी बाजन
शाम की बेला में
गूंज रही है अब तक
मेरे अन्तर्मन
गाँव से आने के बाद .............
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 20-08-2015
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