तुम्हारी
खामोशी को
क्या समझूँ
मैं
मौन स्वीकृति
या फिर
नफरत की
ज्वाला
जो बंद है
तुम्हारे
अंदर
भीतर ही भीतर
जला रही हो
खूद को
या फिर
महका रही हो
मन आँगन को
मिलन की आस
में
चुप हो जाना
तुम्हारा
कचोटता है
मेरे मन को
कहीं कोई
चुभन तो नहीं
मेरे शब्द से
जो निःशब्द कर
खरोच दिया
तुम्हारे
कोमल
हृदयस्थल को
कह दो वजह
खुलकर अपनी
ताकि झांक
सकूँ
दिल के अंदर
वो ज़ख्म या
कली
इनकार व
इकरार की ..........
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 25-08-2015
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