खामोशी
बहुत कुछ कह
देती है धीरे से
अपनी मद्धम
आवाज में
जिंदगी को
बता देती है
असलियत
दुनियाँ की
जिसके पीछे
पागल रहता है
पागल मन
भूल कर अपना
अस्तित्व
और अतीत को
कि कहाँ से और
किसलिए प्रादुर्भाव
हुआ इसका
इस जहां में
बेखबर मशगूल
चकाचौंद परिवेश में
इस कदर
उलझ जाता है
कि खुद ही खुद को
न खोजता है
न पूछता है
खुद का परिचय
खुद से
न ढूंढता है ठिकाना
उस मुकाम का
जहाँ निःशब्द
खामोश हो
चले जाना है
एक दिन सब कुछ
छोड़ पीछे
खामोशी के साथ .........
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 08-08-2015
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