क्यों झुककर
देख हँसती हो
बिखराकर
जुल्फों को अपनी
क्यों कहर
ऐसी बरसाती हो
दिखाकर
मुस्कुराहट अपनी
मैं तो बस
योंहि पागल हूँ
समझो न
गुनहगार अपनी
चले जाना जब
चाहो छोड
क्यों दिल
दुखाती हो अपनी
बस नादानी
में समझ बैठा
तुम्हें चैन
ए दिल की अपनी
बेचैन कर चले
जाना कभी
है तव्वसुर
जिगर को अपनी
आए गए ऐसे तो
कई यहाँ
जगह न बना
पाया अपनी
तुम्हारी
पनाह मिली होती
तमन्ना तो न
रहती अपनी
जीने दो कुछ
पल संग तेरे
आजादी
ख्वाबों की अपनी
मधुर नाता
भँवरा कली का
बंद रात आगोश
में अपनी
छेड़ता नहीं
तनिक वो कभी
प्यार नहीं
है वश में अपनी
लाख चाहो तू
दूर हो जाओ
“निर्भीक” की
जिद है अपनी
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 08-08-2015
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