तुमसे मिलने
की दिली ख़्वाहिश होती है
तुम्हारे पास
आने की ख़्वाहिश होती है
भूल जाऊँ
तुम्हें कभी पल भर के लिए
दिल में कभी
भी नहीं गुंजाइश होती है
उदास हो जाऊँ
गर कभी भी जीवन से
फिर अचानक बूंद
स्वाति बारिस होती है
रहे मेरा पाक
ए मोहब्बत आबाद सदा
खुदा से मेरी
हमेशा नवाज़िश होती है
मिल जाये गर
सच्चा दोस्त जहां में
फिर कहाँ ये
जिंदगी लवारिश होती है
हर किसी की
तमन्ना होती नहीं पूरी
फिर भी दिल
से ये फरमाइश होती है
खिलती रहे
मुस्कुराहट तुम्हारे होंठों पे
रब से यही तो
हमेशा गुजारिश होती है
दस्तक दिल को
तुम देती हो हरदम
मिलने की
क्यों नहीं कोशिश होती है
चाह अगर हो
दिल से मिलन की तो
जमाने की
नहीं कोई बंदिश होती है
दूर होकर भी
तुम करीब हो लेकिन
“निर्भीक” को
तुम्हारी कशिश होती है
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 10-11-2015
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