मन अक्सर
व्यथित होता
है
यह जानकार कि
मन की बात
मन से
मन के
मुताबिक
क्यों नहीं
कर पाता
झुँझला उठता
है
अनायास खुद
ही
खुद से आजिज़
होकर
क्यों नहीं
जी पाता
खुद के लिए
दो पल
जबकि
पल दो पल की
तो
जिंदगी है यह
जीने के
लिए
उलझा रहता है
बेफ़जुल बातों
में
जिसका कोई
वजूद नहीं
स्वयं से ,
गुजरा पल कभी
वापिस नहीं
आता
और आने वाला
पल का
कोई ठिकाना
नहीं
तो फिर क्यों
नहीं
जिया जाता है
इस पल को मन
से
मन के
मुताबिक
मन के लिए
ज़िंदादिली से
खिन्न
“निर्भीक”बस
इसी बात से
है ...........
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 11-02-2016
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