आओ न आज
गले लगा लूँ
तुम्हें
भर लूँ आगोश
में
सबकुछ भूलकर
बसंती मौसम
में
पीले सरसों
के बीच
लगा दूँ तेरे
गुलाबी गालों
पर
अबीर गुलाल
रंगीले फागुन
में
होली जो
सामने है
न रहे कोई
दूरियाँ
हमारे
दरमियाँ
गलत फहमियों
के
जो न जाने
बेवजह
टपक पड़ती है
खटास डालने
को
ढक लो मुझे
अपनी ओढनी से
ताकि किसी की
नजर
न पड़े हम
दोनों पर
फिकर न करो
क्या सोचेगी
दुनियाँ
जी लो
“निर्भीक” होकर
यह पल जीवन
का
शुक्र है अखबार
का
जिसे पढ़ा
सुबह सुबह
मिलन दिवस है
आज
अपने अजीज़ को
अजीम बनाने का
महकते फिज़ाओ
के
बहकते अंदाज
में .........
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 12-02-2016
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