दो मन मिले दो तन मिले
जीवन पथ पे वो संग चले
अनजान दोनों एक दूजे से
अब हर पल संग संग चले
रीति जगत की निभा चले
प्रीत प्रेम की वो दिखा चले
पीड़ा हृदय की न देखे कोई
लबों पर मुस्कान लिए चले
कर दफन सब ख़्वाहिशों को
राहे वफ़ा पर सब भूल चले
सपनों की दुनियाँ है सपना
हकीकत के साथ साथ चले
कभी फूल, कभी शूल मिले
बिना उफ हर वो पल सहे
उन्मुक्त हंसी ले चेहरे पे
घूंट गमों की बरबस पीये
बहुत कठिन जीवन डगर
मूलमंत्र अक्सर साथ चले
खुशी उनकी अपनी खुशी
त्याग समर्पण प्यार करे
मीत नहीं अब दूजा कोई
“निर्भीक” जबसे मीत बने
अपर्णा सती हुई है हँसकर
अपमानित जब शिव हुये
प्रकाश
यादव “निर्भीक”
बड़ौदा
-24-02-2216
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