कभी मझधार दरिया का किनारा हो न पायेगा
कर लो लाख कोशिश वो हमारा हो न पायेगा
चलते रहे हम सदा उसूल से अपने पथ पर
जो दिल नापाक खुदा का प्यारा हो न पायेगा
गुलशन के कली को इस जहां में रौंदने वाले
कभी वो किसी का कोई सहारा हो न पायेगा
क्यों उम्मीद लगाये बैठे हो अपने सरकार
से
गरीबों के घर कभी उजियारा हो न पायेगा
जो घूमता जहाजों में हमारे पैसों से
दुनियाँ
वो कभी हमारे सपनों का तारा हो न पायेगा
हमारे नेता उलझे है रईसजादों के चंगुल
में
मुफ़लिसों का तो दूर अँधियारा हो न पायेगा
कहने को कानून समानता का संविधान में
आदमी का इस दौर में गुजारा हो न पायेगा
दाल रोटी को मुहताज लाखों हो गए यहाँ
अच्छे दिन का दुसरा नजारा हो न पायेगा
इस कदर असहिष्णुता गर देश में चलता रहा
तो फिर कभी आपसी भाईचारा हो न पाएगा
मुँह की खानी पड़ी आसमान में उड़ने वाले
संभल वरना सत्तासीन दुबारा हो न
पायेगा
है बहुत ताकत जनता जनार्दन में “निर्भीक”
देख लिया एकबार फिर तुम्हारा हो न पायेगा
प्रकाश
यादव “निर्भीक”
बड़ौदा
– 12-11-2015
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