हर सवाल का
जबाब हो तुम
फिर क्यूँ
पूछते ख्वाब हो तुम
कर दिया दफन
कब्र में उसे
अब क्यूँ
लेते हिसाब हो तुम
गर है
मोहब्बत चले आओ
पहने क्यूँ ये
नकाब हो तुम
दिले दर्द की
कोई दवा नहीं
बनते क्यूँ यों
कसाब हो तुम
कोसते रहो
तुम बेशक मुझे
नजर में नहीं
खराब हो तुम
ले आया खींच
कर चौराहे से
बेहतरीन वो
शबाब हो तुम
मुझे पीने की
तो आदत नहीं
पिलाती क्यूँ
ये शराब हो तुम
डूब जाने दो
अपनी आँखों में
इश्क का खुला
तालाब हो तुम
चुभे है ये कांटे
जिसे छूने में
सुर्ख लबों का
गुलाब हो तुम
दर्ज ए राज
जिसके पन्ने में
जिलदे बन्द
किताब हो तुम
डूबेगा “निर्भीक”
भी इक रोज
हुस्न का जो सैलाब
हो तुम
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 20.02.2016
No comments:
Post a Comment