अनुरागी
मेरा मन सनम
अनुराग
ही अपना धरम
बैराग्य
को न जाओ तुम
आज
खाओ तुम कसम
प्रीत
हो गई है मुझे अब
तुम
पालो न कोई भरम
तुमसे
दूरी हो गयी गर
ये
होगी आँखें मेरी नम
अर्पणा
मेरी कल्पना है
अपर्णा
बिन शिव कहाँ
लज्जित
हुई जब गौरी
तांडव
मचा है तब यहाँ
त्याग
की मूरत हो तुम
त्यागो
न मुझको सनम
संगिनी
बन संग जियो
बनाके
जीवन तू सुगम
राधा
हो तुम कृष्ण की
प्रेम
तेरा होगा न कम
मीरा
बन तुम आई हो
सत्य
शिव और सुंदरम
ये
पथ बहुत पथरीला है
साथ
चल तुम हर कदम
कंचन
बनकर तुम मिली
“निर्भीक”
को नहीं है गम
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 23-01-2016
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