Friday, February 26, 2016

-: कंचन की चाह:-



देखो न मुझको तुम सनम
मैं तेरे प्यार बिना अधूरा हूँ
खफा न हो कभी तुम मुझसे
तुम जो नहीं तो मैं हारा हूँ

विश्वास नींव सब रिश्ता का
तुमको ही सब कुछ वारा हूँ
सस्नेह नहीं है तुम सा कोई
पीया तो बस आँसू खारा हूँ

गर संग न तुम्हारा पथ पर
हो चंचल चित मैं आवारा हूँ
प्रीत तुम्हीं से किया है मैंने
तुम्हें ही दिल से स्वीकारा हूँ 

हूँ गैर किसी की खातिर यहाँ
तुम्हारा तो मैं सबसे प्यारा हूँ
फिर न रूठो यों तुम अक्सर
बैठा मैं इधर नदी किनारा हूँ

तुम कनकलता हो जीवन की
मैं तेरे सपनों का तो तारा हूँ
फिर बिफर पड़ी क्यों कहकर
मैं तुमको नहीं कभी संवारा हूँ

कंचन की चाह में छोड़ा घर
बमुश्किल ही वक्त गुजारा हूँ
चल तुम संग “निर्भीक” होकर
वरना दुनियाँ में मैं नकारा हूँ
            प्रकाश यादव “निर्भीक”
            बड़ौदा – 02-01-2016


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