देखो न
सांझ होते ही
उषा अपने घर
को
लौट चुकी है
चिड़ियाँ भी
अब
बांस के फेड़
में
चहचहा रही है
अपने बच्चों
के संग
पहुँच चुके
है
सारे के सारे
पशुओं के
झुंड
अपने अपने
बथान में
दिया बाती भी
खुशी से
रोशनी फैला रही
है
आँगन में
और कह रही है
पतिंगों से
लिपट जाने को
अपने आगोश
में
चाँद भी
तारों के संग
दे रही है
शीतलता
अपने प्रियतम
को
जो दिनभर
अपने ही लौ
में
जलता रहा
सुबह से
शाम ढलने तक
इसे ही देखकर
तो
इक उम्मीद की
किरण
फिर से जाग
उठी है दिल में
कि आओगे तुम
आज न कल सही
किसी शाम को
अपनी कस्तुरी
कंचन लेकर .................
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 01-07-2015
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