तुमसे मिलने
की आरजू थी बहुत
पथरीला पथ
प्रेम का होने न दिया
ख्वाबों में
ही हम तुम्हें निहारते रहे
हवा का रुख
प्रेमदीप जलने न दिया
कैसी है मेरी
प्रेम कुसुम खबर नहीं
बाग में फिर
से मुझे जाने न दिया
तुम्हारी भी
तमन्ना थी मालूम मुझे
जमाने ने
तरन्नुम को पाने न दिया
अमावश के बाद
पूनम आती है सदा
प्रथा समाज
की दीदार करने न दिया
मुख पे तिल
और हंसी लवों की तेरी
मंजर वो सकुन
कभी भूलने न दिया
पंखुड़ियाँ
तेरे प्यार की बिखरे है यहाँ
आँचल तेरे
मनुहार की उड़ने न दिया
आती है बारिश
अब भी तो सारेआम
रुमाल तेरा
दिया कभी भींगने न दिया
चाहत खेतू की
थी कुँवर का होने की
कमबख्त मुगल
ने उसे जीने न दिया
करता “निर्भीक”
बयां ए मोहब्बत का
खूबसूरत साकी
ने जाम छूने न दिया
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 04-07-2015
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