सोचते है
क्यों हम अभी
जो न मिल सका
कभी
बैठा किस इंतिज़ार
में
हुआ जो न अपना
कभी
झरना क्या
रुका है कभी
पर्वत क्या
झुका है कभी
फिर किस
इंतिज़ार में
मायूस होकर
रुका अभी
चल पथिक पथ
पे आगे
मिले पथ
पथरीला कभी
थकना किस
इंतिज़ार में
मिलेगी वो
कभी न कभी
जीवन नाम तो
है चलना
रुक जाना है
मरना तभी
खामोश किस
इंतिज़ार में
मिलेगा न ऐसा
पल कभी
बुरा किसी का
क्या करना
भला न जब तू
किया कभी
रुकना किस
इंतिज़ार में
कर दे शुभ
काम तू अभी
सौंधी सुगंध
वो बयार की
जो दे गई
हौले से कभी
आँचल किस
इंतिज़ार में
फैलाये है
सन्मुख अभी
अपना कौन
पराया कौन
दिल में न रख
बात कभी
“निर्भीक” किस
इंतिज़ार में
जाएगा एक दिन
तो सभी
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 15-07-2015
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