Monday, July 20, 2015

-: सुना आँगन :-





तुम बिन कैसे बीते रैना
गए छोड़ क्या जानो रे

करवट बदले तो न चैना
दर्द जिगर क्या जानो रे

बहती नदी सी बहे नैना
पीर पराई क्या जानो रे 

कोयल कूके डाली डाली
चुभन दिल क्या जानो रे

बैठी रोयी खुद देहरी पर
सुना आँगन क्या जानो रे

बंधी आस तो टूटा जाए
टूटन छोह क्या जानो रे

सावन बीता जाए अपना
खनक चुड़ियाँ क्या जानो रे

चले गए परदेश पिया तू
सुना जीवन क्या जानो रे

बुरी नजर दुनियाँ की अब
जीना दूभर क्या जानो रे

रूह में तूम बसे हो मेरे  
जिस्म जहां क्या जानो रे

बाबरी मैं अपने किशन की
“निर्भीक” को क्या जानो रे

                  प्रकाश यादव “निर्भीक”
                  बड़ौदा – 15-07-2015  

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