Monday, July 20, 2015

-: लिबास :-




लिबास तुम्हारा
तुम्हारी तरह
बेदाग व पाक है
तुम्हें खूबसूरत 
बनाए रखा है
गुलाब के हरे
पत्तों की भांति
दुनियाँ की कंटीली
नजरों से
बचाकर अक्सर
मगर हर नजर
बुरी नहीं होती
जैसा कि तुम्हारे
जेहन में जगह
ले चुकी है गलतफ़हमी  
आजकल बेवजह ,
बेपनाह मोहब्बत है
इन आँखों में भी
संगमरमर सरीखे
लिबास ओढ़े
मुमताज़ के लिए
चाँदनी रात में
तुम्हारे धवल
ताजमहल चेहरे पर पड़े
ओंस की बूंदें
तरन्नुम बन पुकार
रही है मुझे   
मानो जैसे पूनम
सितारों के बीच
बादलों में छिपकर
चातक को
कह रही हो कि
मैं तो बस
तुम्हारी अभिलाषा को
पूर्ण होते देखना
चाहती हूँ
इस लिबास में
मगर लोग कहते है
कि चाँद में भी
दाग होता है
और फिर मायूस हो
बादलों कि ओट में
छिप जाती हूँ
तुम्हारी नजरों से
अपना ही लिबास में
और मैं चातक
ताकता रहता हूँ
अपलक तुम्हारी ओर
अपने ख्वाबों के
मखमली लिबास को
ओढ़कर रातभर ..............
                             प्रकाश यादव “निर्भीक”
                             बड़ौदा – 10-07-2015 

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