मैं बैठी उदास
आस में तेरी
लाओगे एक दिन
जो खुशी थी
मेरी
जब से गए तुम
नजर चुराकर
बैठी हूँ मैं
बस
इंतिज़ार में
तेरी
चुन मून तेरे
खेल रहे है
मन ही मन
सब झेल रहे
है
कह देती हूँ
झूठी बन कर
सच्चे तेरे
ही
नेह रहे है
भोले मन को
समझाऊँ
कैसे
वो तो तुमसे
खेल रहे है
सावन बीता
व भादों बीता
आँसू नदियां
सी
बह रहे है
बूढ़ी माँ अब
ढाढ़स देती
बाबूजी सब
देख रहे है
आओ अब तो
ये नयन भी
तरसे
बाट बाट सब
जोह रहे है ..............
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 07-07-2015
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