ऐ बहती नदी
की धारा
तू कर दे
मुझे किनारा
देखो न तुम उधर
जरा
कर रही है कोई
इशारा
बैठी कब से इंतिज़ार
में
बहाकर अपनी अश्रु
धारा
न ले जा साथ अभी
तो
बचा यह है
जीवन सारा
बाकी है
मनुहार प्यारा
है वो मेरी
जीवन धारा
कल कल सी
बहती है
तुमसे ही है सीखा
सारा
मिलने को हो आतुर
तुम
अपने ही सागर
प्रेमी से
प्रेम फीका रहा
गया मेरा
जकड़ों न तुम
यों बाहों से
वादा अपना
रहा अधूरा
कर लेने दो उसको
पूरा
चलेंगे तुम
संग एक दिन
जीने दो कुछ
दिन न्यारा
ख्वाबों के कई
फूल खिलेंगे
होगा वो तो आँखों
का तारा
तब तुम आना मेरे
शहर में
लेकर अपनी बलखाती
धारा
आता
“निर्भीक” रोज यहाँ
मिलने को दिल
जो हारा
प्रीत किया जीवन
भर का
क्यों तोड़ते हो
साथ हमारा
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 20-07-2015
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