Monday, July 20, 2015

-: प्रीति :-




दिल लगाने का कोई पहर नहीं होता 
फिसल जाने की कोई उम्र नहीं होती
महका दो गेसूओं को गजरों से तुम
प्रेमरस कभी भी तो जहर नहीं होती

पुष्प का भ्रमर को न्योता नहीं होता
पानी में खिला कमल डूबा नहीं होता
चाह प्रेमी को इसकी कभी नहीं होती
अगर गुलाब व काँटा संग नहीं होता

पत्थर पर छेनी का प्रहार नहीं होता
संगमरमर सा सुंदर कभी नहीं होता
पड़ा रहता वो किसी कोने में योंहि  
शाहजहाँ का भी ताजमहल न होता

बेजान पत्थर में गर जान नहीं होती
बेपनाह मोहब्बत की पहचान न होती
आज भी मुमताज़ है महफूज ताज में
वरना प्यार की तो कोई शान न होती

मधुप चुप क्यों गुल आगोश में होता
गर मनुहार में कोई ताकत नहीं होती
बेसुध पतिंगा क्यों लौ में जला होता
गर दीपक में कोई आशक्ति न होती

इन्द्र क्या पूर्ण होता गर शची न होती
क्या कामदेव देव होता रति नहीं होती
क्या होता जगत का गर प्रीति न होती
“निर्भीक” कहाँ गर उनकी हंसी न होती

                        प्रकाश यादव “निर्भीक”
                        बड़ौदा – 09-07-2015 

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