Monday, July 20, 2015

-: कातिल निगाह :-





कातिल निगाहों से न देखो
यों तुम कभी मुस्कुराते हुए
यौवन के दहलीज पे खड़ी
देख रही है वो शरमाते हुए

आते रहे तुम अक्सर यहाँ
न देखा कभी उसे देखते हुए
मन ही मन दिल दे बैठी
जबसे देखा तुम्हें हँसते हुए

कुछ देर ही सही कह दो
देख सकते नहीं रोते हुए
बन मीरा बैठी है कब से
मायूस न करो जाते हुए

तेरी हंसी की है वो कायल
कहती है बस घबराते हुए
सुन लो तू मौन की भाषा
बीते बरस आजमाते हुए

सकुन तो चिड़ियों से पुछो
मिलते है जब चहकते हुए
टूटन का दर्द क्या जानो
देखा है कभी सिसकते हुए

जख्मी “निर्भीक” से पुछो
संभला कैसे बिखरते हुए
बहुत मुश्किल फिर जीना
देख अरमान को टूटते हुए

            प्रकाश यादव “निर्भीक”
            बड़ौदा – 14-07-2015  

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